जनता के साथ मिलकर पूँजीवाद के विकल्प में एक समाज का निर्माण
मार्ता हार्नेकर
1998 के राष्ट्रपति-चुनाव में जब ऊगो चावेस को कामयाबी मिली तो उस समय तक पूँजीवाद का नवउदारवादी मॉडल लड़खड़ाने लगा था। उस समय दो ही रास्ते बचे थे — इस नवउदारवादी पूँजीवादी मॉडल में कुछ ऐसे परिवर्तन करके जिसमें सामाजिक मुद्दों के प्रति ज्यादा सरोकार हो लेकिन जो मुनाफाखोरी की पुरानी प्रवृत्ति से ही चालित हो, इसे फिर से स्थापित किया जाए या एक नए मॉडल के निर्माण की कोशिश की जाए।
मैं समझती हूँ कि चावेस की मुख्य विरासत यह थी कि उन्होंने दूसरे विकल्प को चुना। उस विकल्प का कोई नाम देने के लिए उन्होंने समाजवाद शब्द को भी चुना — बावजूद इसके कि इस शब्द के ऊपर कुछ नकारात्मक बोझ लदा हुआ था। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका समाजवाद 21वीं शताब्दी का समाजवाद है और ऐसा करने के पीछे उनका मकसद 20वीं शताब्दी में स्थापित सोवियत समाजवाद से अपने को भिन्न दिखाना था जिसमें यह चेतावनी भी शामिल थी कि हमें ‘स्तालिनवादी भटकाव’ की वजह से ‘अतीत की गलतियों का शिकार नहीं होना चाहिए।’ उनका आशय उन गलतियों से था जिन्होंने पार्टी में नौकरशाही को स्थापित कर आम जनता की पहलकदमी को समाप्त कर दिया, राजकीय पूँजीवाद की स्थापना की जिसमें उद्यमों पर मजदूरों के निजी प्रबंधन की बजाए राज्य का स्वामित्व स्थापित हो गया।
चावेस ने समाजवाद की परिकल्पना एक ऐसे नए सामूहिक जीवन के रूप में की जिसमें समानता, स्वतंत्रता और वास्तविक तथा गहन जनतंत्र का साम्राज्य हो और जिसमें जनता स्वयं अपने भाग्य विधाता की भूमिका निभाए। एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था की कल्पना की जिसके केंद्र में मुनाफा नहीं बल्कि मानव समुदाय हो। एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था हो जो बहुलवादी हो और जिसमें उपभोक्तावाद विरोधी ऐसी संस्कृति हो जो स्वामित्व के मुकाबले जीवन को प्राथमिकता दे।
मेरियातेगी की तरह चावेस का मानना था कि 21वीं सदी का समाजवाद पुराने तरह के समाजवाद की हू-ब-हू नकल (कार्बन कॉपी) नहीं हो सकता और इसे एक ‘बहादुराना कृत्य’ होना चाहिए और इसी वजह से उन्होंने बोलीवेरियन, रोबिंसोनियन, अमेरिंदियन समाजवाद कहा।
दिवंगत राष्ट्रपति के भाषणों में बार-बार आम आदमी को नायक बनाने की जरूरत का जिक्र आता है। इन भाषणों में इसका जिक्र जनतांत्रिक समाजवाद के अन्य प्रस्तावों से उनके प्रस्ताव को भिन्न ठहराता है। उनका मानना था कि सभी क्षेत्रों में एक नायक के रूप में आम आदमी की भागीदारी से ही मानव जाति का विकास संभव है और इसके जरिए ही आम आदमी के अंदर वह आत्म-विश्वास पैदा हो सकता है जो उसे मनुष्य के रूप में और भी ज्यादा विकसित करे।
ये सारी बातें महज बातें बनकर रह जातीं अगर चावेस ने भागीदारी की प्रक्रिया को मूर्त रूप लेने के लिए स्थान तैयार नहीं किया होता। यही वजह है कि सामुदायिक परिषदों (स्वप्रबंधन वाले सामुदायिक केंद्र), मजदूरों की परिषदों, छात्रों की परिषदों और किसानों की परिषदों की स्थापना में उनके द्वारा ली गई पहल इतनी महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने सही अर्थों में एक सामूहिक संरचना स्थापित करने के मकसद को आकार दिया जो खुद को विकेंद्रित राज्य के नए रूप में व्यक्त कर सके और जिसके बुनियादी आधर में कम्यून हों।
चावेस के अनुसार जनता के साथ मिलकर निर्माण का अर्थ एक नई सामाजिक परियोजना के लिए जनता के दिलो-दिमाग पर विजय पाना था । उन्हें पता था कि यह काम उपदेश देकर नहीं बल्कि व्यवहार के जरिए संभव हो सकता है। यह काम खुद जनता के लिए अवसरों का निर्माण करके हो सकता है ताकि वे परियोजना के निर्माता बन सकें और इस प्रकार वे किसी परियोजना को खुद अपनी परियोजना समझ सकें। इसीलिए उन्होंने सलाह दी :
‘संकीर्णतावाद से सावधान रहें। अगर कुछ ऐसे लोग हैं जो राजनीति में हिस्सेदारी नहीं कर सकते, जो किसी पार्टी के सदस्य नहीं हैं तो भी कोई बात नहीं — उनका स्वागत है। इतना ही नहीं अगर कोई विरोध में सामने आता है तो उसे समझाएँ और साथ लें । उसे काम करने दें और उसकी उपयोगिता का इस्तेमाल करें । यह देश हर व्यक्ति का है। अपने दरवाजे खुले रखें और आप देखेंगे कि आपके व्यवहार से अनेक लोग खुद को बदलेंगे।’
चावेस नौसिखिए नहीं थे जैसा कि कुछ लोग सोचते रहे हैं। उन्हें पता था कि इस परियोजना को मूर्त रूप लेने का विरोध करने वाली ताकतें अत्यंत शक्तिशाली हैं। लेकिन यथार्थवादी होने का अर्थ यह नहीं है कि राजनीति के बने-बनाए नजरिए को भुला दिया जाए जो हर चीज को संभव बनाने की कला है। चावेस के लिए राजनीति वह कला थी जो असंभव को संभव बना सकती है। और यह काम विशुद्ध स्वेच्छावाद से नहीं बल्कि विद्यमान यथार्थ से शुरुआत करके संभव है। इसके अधीन वे स्थितियाँ तैयार करने की कोशिश शामिल है जो बदलाव ला सकें। उन शक्तियों के बीच आपसी संबंध निर्मित करने की कोशिश है जो बदलाव के अनुकूल हों। उन्हें यह अच्छी तरह पता था कि आज जो असंभव दिखाई दे रहा है उसे भविष्य में संभव बनाने के लिए जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय और साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न शक्तियों के बीच परस्पर संबंधें में तब्दीली लाई जाए। अपने प्रशासन के समूचे काल में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ काम किया। उन्हें पता था कि राजनीतिक सत्ता के निर्माण के उद्देश्य को पूरा करने के लिए नेतृत्व के उच्च स्तर पर किए गए समझौते पर्याप्त नहीं हैं । सबसे ज्यादा जरूरी है कि एक सामाजिक शक्ति का निर्माण किया जाए।
अनुवाद : आनंदस्वरूप वर्मा
वेनेजुएला की क्रांति (दानिश बुक्स, 2014)