वेनेजुएला की क्रांति : ऊगो चावेस से मार्ता हार्नेकर की बातचीत
2014 ∙ 256 पृ. ∙ 5.5x8.5”
978-93-81144-37-4 (सजिल्द) ∙ ₹400
978-93-81144-38-1 (पेपरबैक) ∙ ₹200
किताब के बारे में
ऊगो चावेस के साथ मार्ता हार्नेकर का यह साक्षात्कार उस नाटकीय घटना के कुछ ही दिनों बाद हुआ था जिसमें अप्रैल 2002 में चावेस का तख्ता पलटने की असफल कोशिश हुई थी और इस कोशिश के खिलाफ विरोध और प्रतिरोध भरे व्यापक जन आंदोलन ने चावेस को फिर सत्ता पर बिठा दिया था। इस असफल सैनिक विद्रोह की पृष्ठभूमि में चावेस ने बातचीत में मार्ता हार्नेकर को बताया कि कैसे उनके राजनीतिक विचारों ने आकार लिया, वेनेजुएला के लिए उनके अंदर क्या आकांक्षाएँ हैं, उनकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय नीति क्या है, उनके राजनीतिक संगठन के समक्ष किस तरह की समस्याएँ हैं, अन्य देशों के सामाजिक आंदोलनों के साथ उनके क्या संबंध हैं और किस तरह उन्होंने ठोस घटनाओं तथा परिवर्तन की अपनी रणनीति के बीच संबंध स्थापित किया।
मार्ता हार्नेकर और चावेस के बीच हुई यह बातचीत कहीं वैचारिक है तो कहीं घटनाओं पर केंद्रित लेकिन समूची बातचीत में यह देखा जा सकता है कि उत्पीड़ित लोगों के संघर्ष के प्रति चावेस के अंदर जुनून की हद तक प्रतिबद्धता थी । इस साक्षात्कार से उनकी समूची विचार प्रक्रिया और कार्यपद्धति की जानकारी मिल जाती है।
इसके साथ ही हार्नेकर ने सेना की भूमिका का भी विश्लेषण किया है और घटनाक्रम का विवरण भी प्रस्तुत किया है।
ऊगो चावेस समूचे लातिन अमेरिका में अमेरिकी साम्राज्यवाद के प्रतिरोध के प्रतीक बन चुके हैं । इस क्षेत्र के भविष्य के लिए उनका महत्त्व इस पुस्तक को और भी ज्यादा पठनीयता देता है।
लेखक के बारे में
ऊगो चावेस : वेनेजुएला के एक स्कूल अध्यापक के पुत्रा ऊगो चावेस का जन्म 28 जुलाई 1954 को हुआ था। 1975 में उन्होंने वेनेजुएलन एकेडमी ऑफ मिलिट्री साइंसेज से डिग्री लेने के बाद सेना में नौकरी की। 1992 में उन्होंने सेना के अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिल कर कॉर्लोस पेरेस की तानाशाही के खिलाफ असफल विद्रोह किया और जेल में डाल दिए गए। दो वर्ष बाद वह रिहा हुए और उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई। 1998 में उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और फिर 1999 से 2013 तक इस पद पर बने रहे। 5 मार्च 2013 को कैंसर से उनकी मृत्यु हुई।
मार्ता हार्नेकर : चिले की मार्क्सवादी जो लातिन अमेरिका में सामाजिक रूपांतरण के अनुभवों का विश्लेषण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने 80 से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं और ये सारी पुस्तकें www.rebelion.org पर उपलब्ध हैं। यह पुस्तक मंथली रिव्यू प्रेस/दानिश बुक्स द्वारा अंग्रेजी में “अंडरस्टेंडिंग दि वेनेजुएलन रिवोल्यूशन: ऊगो चावेस टॉक्स विद मार्ता हार्नेकर” (2005) शीर्षक से प्रकाशित है।
आनंद स्वरूप वर्मा : आनंद स्वरूप वर्मा पिछले चार दशकों से भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों में चल रहे साम्राज्यवाद और सामंतवाद विरोधी संघर्षों पर लगातार लिखते रहे हैं। जनपक्षीय पत्राकारिता और वैकल्पिक मीडिया विकसित करने के मकसद से 1980 में उन्होंने ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ का संपादन-प्रकाशन शुरू किया। 1991 में उनकी पुस्तक ‘दक्षिण अप्रफीका : गोरे आतंक के खिलाफ काली चेतना’ प्रकाशित हुई और 1994 में उन्होंने दक्षिण अप्रफीका के प्रथम जनतांत्रिक चुनाव की दैनिक ‘जनसत्ता’ में रिपोर्टिंग की । नेपाल के माओवादी आंदोलन पर उनकी पुस्तक ‘रोल्पा से डोल्पा तक’ काफी चर्चित रही। उन्होंने बीस से अधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है ।
लेखक के बारे में
ऊगो चावेस : वेनेजुएला के एक स्कूल अध्यापक के पुत्रा ऊगो चावेस का जन्म 28 जुलाई 1954 को हुआ था। 1975 में उन्होंने वेनेजुएलन एकेडमी ऑफ मिलिट्री साइंसेज से डिग्री लेने के बाद सेना में नौकरी की। 1992 में उन्होंने सेना के अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिल कर कॉर्लोस पेरेस की तानाशाही के खिलाफ असफल विद्रोह किया और जेल में डाल दिए गए। दो वर्ष बाद वह रिहा हुए और उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई। 1998 में उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और फिर 1999 से 2013 तक इस पद पर बने रहे। 5 मार्च 2013 को कैंसर से उनकी मृत्यु हुई।
मार्ता हार्नेकर : चिले की मार्क्सवादी जो लातिन अमेरिका में सामाजिक रूपांतरण के अनुभवों का विश्लेषण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने 80 से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं और ये सारी पुस्तकें www.rebelion.org पर उपलब्ध हैं। यह पुस्तक मंथली रिव्यू प्रेस/दानिश बुक्स द्वारा अंग्रेजी में “अंडरस्टेंडिंग दि वेनेजुएलन रिवोल्यूशन: ऊगो चावेस टॉक्स विद मार्ता हार्नेकर” (2005) शीर्षक से प्रकाशित है।
आनंद स्वरूप वर्मा : आनंद स्वरूप वर्मा पिछले चार दशकों से भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों में चल रहे साम्राज्यवाद और सामंतवाद विरोधी संघर्षों पर लगातार लिखते रहे हैं। जनपक्षीय पत्राकारिता और वैकल्पिक मीडिया विकसित करने के मकसद से 1980 में उन्होंने ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ का संपादन-प्रकाशन शुरू किया। 1991 में उनकी पुस्तक ‘दक्षिण अप्रफीका : गोरे आतंक के खिलाफ काली चेतना’ प्रकाशित हुई और 1994 में उन्होंने दक्षिण अप्रफीका के प्रथम जनतांत्रिक चुनाव की दैनिक ‘जनसत्ता’ में रिपोर्टिंग की । नेपाल के माओवादी आंदोलन पर उनकी पुस्तक ‘रोल्पा से डोल्पा तक’ काफी चर्चित रही। उन्होंने बीस से अधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है ।
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