Thursday, 17 April 2014

Ideas for the Struggle



Ideas for the Struggle





Marta Harnecker

2014 . 56pp. . 5.25x7.5"
ISBN 978-93-81144-39-8 (Pb) . ₹50





“The failure of the Left to harness the huge forces that seethe and boil in actions—large and small against neoliberalism and other capitalist forces and what is to be done to achieve that is the true content of this inspiring book. The major sections in the book are descriptions of Left sectarianism, commandism and the failure to come to terms with the various new features of struggle in a globalized world.”
—Vaskar Nandy

Marta Harnecker is a Chilean sociologist, political scientist, journalist and activist. After studying with Louis Althusser in Paris she returned to her native Chile. Upon her return to Chile in 1968, she got caught up in the resistance movement against the coup by General Augusto Pinochet against president Salvador Allende and was forced into exile in Cuba. In Cuba she founded and runs the research institute Memoria Popular Latinoamerica (MEPLA). She is among the most prominent analysts of the experience of social transformation in Latin America. She served as an advisor to President Hugo Chavez during 2003–2011. She is the author of more than eighty books, all of which can be found online at www.rebelion.org. Her recent publications include Hugo Chávez Frías: un hombre, un pueblo (2002), published in English by Monthly Review Press and Daanish Books as Understanding the Venezuelan Revolution: Hugo Chávez Talks with Marta Harnecker (2005), Rebuilding the Left published in English by Zed Books and Daanish Books in 2007 and Ideas for the Struggle (Daanish Books, 2014).

चावेस की मुख्य विरासत


जनता के साथ मिलकर पूँजीवाद के विकल्प में एक समाज का निर्माण

मार्ता हार्नेकर

1998 के राष्ट्रपति-चुनाव में जब ऊगो चावेस को कामयाबी मिली तो उस समय तक पूँजीवाद का नवउदारवादी मॉडल लड़खड़ाने लगा था। उस समय दो ही रास्ते बचे थे — इस नवउदारवादी पूँजीवादी मॉडल में कुछ ऐसे परिवर्तन करके जिसमें सामाजिक मुद्दों के प्रति ज्यादा सरोकार हो लेकिन जो मुनाफाखोरी की पुरानी प्रवृत्ति से ही चालित हो, इसे फिर से स्थापित किया जाए या एक नए मॉडल के निर्माण की कोशिश की जाए।

मैं समझती हूँ कि चावेस की मुख्य विरासत यह थी कि उन्होंने दूसरे विकल्प को चुना। उस विकल्प का कोई नाम देने के लिए उन्होंने समाजवाद शब्द को भी चुना — बावजूद इसके कि इस शब्द के ऊपर कुछ नकारात्मक बोझ लदा हुआ था। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका समाजवाद 21वीं शताब्दी का समाजवाद है और ऐसा करने के पीछे उनका मकसद 20वीं शताब्दी में स्थापित सोवियत समाजवाद से अपने को भिन्न दिखाना था जिसमें यह चेतावनी भी शामिल थी कि हमें ‘स्तालिनवादी भटकाव’ की वजह से ‘अतीत की गलतियों का शिकार नहीं होना चाहिए।’ उनका आशय उन गलतियों से था जिन्होंने पार्टी में नौकरशाही को स्थापित कर आम जनता की पहलकदमी को समाप्त कर दिया, राजकीय पूँजीवाद की स्थापना की जिसमें उद्यमों पर मजदूरों के निजी प्रबंधन की बजाए राज्य का स्वामित्व स्थापित हो गया।

चावेस ने समाजवाद की परिकल्पना एक ऐसे नए सामूहिक जीवन के रूप में की जिसमें समानता, स्वतंत्रता और वास्तविक तथा गहन जनतंत्र का साम्राज्य हो और जिसमें जनता स्वयं अपने भाग्य विधाता की भूमिका निभाए। एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था की कल्पना की जिसके केंद्र में मुनाफा नहीं बल्कि मानव समुदाय हो। एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था हो जो बहुलवादी हो और जिसमें उपभोक्तावाद विरोधी ऐसी संस्कृति हो जो स्वामित्व के मुकाबले जीवन को प्राथमिकता दे।

मेरियातेगी की तरह चावेस का मानना था कि 21वीं सदी का समाजवाद पुराने तरह के समाजवाद की हू-ब-हू नकल (कार्बन कॉपी) नहीं हो सकता और इसे एक ‘बहादुराना कृत्य’ होना चाहिए और इसी वजह से उन्होंने बोलीवेरियन, रोबिंसोनियन, अमेरिंदियन समाजवाद कहा।

दिवंगत राष्ट्रपति के भाषणों में बार-बार आम आदमी को नायक बनाने की जरूरत का जिक्र आता है। इन भाषणों में इसका जिक्र जनतांत्रिक समाजवाद के अन्य प्रस्तावों से उनके प्रस्ताव को भिन्न ठहराता है। उनका मानना था कि सभी क्षेत्रों में एक नायक के रूप में आम आदमी की भागीदारी से ही मानव जाति का विकास संभव है और इसके जरिए ही आम आदमी के अंदर वह आत्म-विश्वास पैदा हो सकता है जो उसे मनुष्य के रूप में और भी ज्यादा विकसित करे।

ये सारी बातें महज बातें बनकर रह जातीं अगर चावेस ने भागीदारी की प्रक्रिया को मूर्त रूप लेने के लिए स्थान तैयार नहीं किया होता। यही वजह है कि सामुदायिक परिषदों (स्वप्रबंधन वाले सामुदायिक केंद्र), मजदूरों की परिषदों, छात्रों की परिषदों और किसानों की परिषदों की स्थापना में उनके द्वारा ली गई पहल इतनी महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने सही अर्थों में एक सामूहिक संरचना स्थापित करने के मकसद को आकार दिया जो खुद को विकेंद्रित राज्य के नए रूप में व्यक्त कर सके और जिसके बुनियादी आधर में कम्यून हों।

चावेस के अनुसार जनता के साथ मिलकर निर्माण का अर्थ एक नई सामाजिक परियोजना के लिए जनता के दिलो-दिमाग पर विजय पाना था । उन्हें पता था कि यह काम उपदेश देकर नहीं बल्कि व्यवहार के जरिए संभव हो सकता है। यह काम खुद जनता के लिए अवसरों का निर्माण करके हो सकता है ताकि वे परियोजना के निर्माता बन सकें और इस प्रकार वे किसी परियोजना को खुद अपनी परियोजना समझ सकें। इसीलिए उन्होंने सलाह दी :
‘संकीर्णतावाद से सावधान रहें। अगर कुछ ऐसे लोग हैं जो राजनीति में हिस्सेदारी नहीं कर सकते, जो किसी पार्टी के सदस्य नहीं हैं तो भी कोई बात नहीं — उनका स्वागत है। इतना ही नहीं अगर कोई विरोध में सामने आता है तो उसे समझाएँ और साथ लें । उसे काम करने दें और उसकी उपयोगिता का इस्तेमाल करें । यह देश हर व्यक्ति का है। अपने दरवाजे खुले रखें और आप देखेंगे कि आपके व्यवहार से अनेक लोग खुद को बदलेंगे।’

चावेस नौसिखिए नहीं थे जैसा कि कुछ लोग सोचते रहे हैं। उन्हें पता था कि इस परियोजना को मूर्त रूप लेने का विरोध करने वाली ताकतें अत्यंत शक्तिशाली हैं। लेकिन यथार्थवादी होने का अर्थ यह नहीं है कि राजनीति के बने-बनाए नजरिए को भुला दिया जाए जो हर चीज को संभव बनाने की कला है। चावेस के लिए राजनीति वह कला थी जो असंभव को संभव बना सकती है। और यह काम विशुद्ध स्वेच्छावाद से नहीं बल्कि विद्यमान यथार्थ से शुरुआत करके संभव है। इसके अधीन वे स्थितियाँ तैयार करने की कोशिश शामिल है जो बदलाव ला सकें। उन शक्तियों के बीच आपसी संबंध निर्मित करने की कोशिश है जो बदलाव के अनुकूल हों। उन्हें यह अच्छी तरह पता था कि आज जो असंभव दिखाई दे रहा है उसे भविष्य में संभव बनाने के लिए जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय और साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न शक्तियों के बीच परस्पर संबंधें में तब्दीली लाई जाए। अपने प्रशासन के समूचे काल में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ काम किया। उन्हें पता था कि राजनीतिक सत्ता के निर्माण के उद्देश्य को पूरा करने के लिए नेतृत्व के उच्च स्तर पर किए गए समझौते पर्याप्त नहीं हैं । सबसे ज्यादा जरूरी है कि एक सामाजिक शक्ति का निर्माण किया जाए।

अनुवाद : आनंदस्वरूप वर्मा

वेनेजुएला की क्रांति (दानिश बुक्स, 2014)

वेनेजुएला की क्रांति : ऊगो चावेस से मार्ता हार्नेकर की बातचीत


वेनेजुएला की क्रांति : ऊगो चावेस से मार्ता हार्नेकर की बातचीत

2014 ∙ 256 पृ. ∙ 5.5x8.5”
978-93-81144-37-4 (सजिल्द) ∙ ₹400
978-93-81144-38-1 (पेपरबैक) ∙ ₹200






किताब के बारे में 
ऊगो चावेस के साथ मार्ता हार्नेकर का यह साक्षात्कार उस नाटकीय घटना के कुछ ही दिनों बाद हुआ था जिसमें अप्रैल 2002 में चावेस का तख्ता पलटने की असफल कोशिश हुई थी और इस कोशिश के खिलाफ विरोध और प्रतिरोध भरे व्यापक जन आंदोलन ने चावेस को फिर सत्ता पर बिठा दिया था। इस असफल सैनिक विद्रोह की पृष्ठभूमि में चावेस ने बातचीत में मार्ता हार्नेकर को बताया कि कैसे उनके राजनीतिक विचारों ने आकार लिया, वेनेजुएला के लिए उनके अंदर क्या आकांक्षाएँ हैं, उनकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय नीति क्या है, उनके राजनीतिक संगठन के समक्ष किस तरह की समस्याएँ हैं, अन्य देशों के सामाजिक आंदोलनों के साथ उनके क्या संबंध हैं और किस तरह उन्होंने ठोस घटनाओं तथा परिवर्तन की अपनी रणनीति के बीच संबंध स्थापित किया।

मार्ता हार्नेकर और चावेस के बीच हुई यह बातचीत कहीं वैचारिक है तो कहीं घटनाओं पर केंद्रित लेकिन समूची बातचीत में यह देखा जा सकता है कि उत्पीड़ित लोगों के संघर्ष के प्रति चावेस के अंदर जुनून की हद तक प्रतिबद्धता थी । इस साक्षात्कार से उनकी समूची विचार प्रक्रिया और कार्यपद्धति की जानकारी मिल जाती है।

इसके साथ ही हार्नेकर ने सेना की भूमिका का भी विश्लेषण किया है और घटनाक्रम का विवरण भी प्रस्तुत किया है।

ऊगो चावेस समूचे लातिन अमेरिका में अमेरिकी साम्राज्यवाद के प्रतिरोध के प्रतीक बन चुके हैं । इस क्षेत्र के भविष्य के लिए उनका महत्त्व इस पुस्तक को और भी ज्यादा पठनीयता देता है।

लेखक के बारे में 
ऊगो चावेस : वेनेजुएला के एक स्कूल अध्यापक के पुत्रा ऊगो चावेस का जन्म 28 जुलाई 1954 को हुआ था। 1975 में उन्होंने वेनेजुएलन एकेडमी ऑफ मिलिट्री साइंसेज से डिग्री लेने के बाद सेना में नौकरी की। 1992 में उन्होंने सेना के अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिल कर कॉर्लोस पेरेस की तानाशाही के खिलाफ असफल विद्रोह किया और जेल में डाल दिए गए। दो वर्ष बाद वह रिहा हुए और उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई। 1998 में उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और फिर 1999 से 2013 तक इस पद पर बने रहे। 5 मार्च 2013 को कैंसर से उनकी मृत्यु हुई।

मार्ता हार्नेकर : चिले की मार्क्सवादी जो लातिन अमेरिका में सामाजिक रूपांतरण के अनुभवों का विश्लेषण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने 80 से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं और ये सारी पुस्तकें www.rebelion.org पर उपलब्ध हैं। यह पुस्तक मंथली रिव्यू प्रेस/दानिश बुक्स द्वारा अंग्रेजी में “अंडरस्टेंडिंग दि वेनेजुएलन रिवोल्यूशन: ऊगो चावेस टॉक्स विद मार्ता हार्नेकर” (2005) शीर्षक से प्रकाशित है।

आनंद स्वरूप वर्मा : आनंद स्वरूप वर्मा पिछले चार दशकों से भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों में चल रहे साम्राज्यवाद और सामंतवाद विरोधी संघर्षों पर लगातार लिखते रहे हैं। जनपक्षीय पत्राकारिता और वैकल्पिक मीडिया विकसित करने के मकसद से 1980 में उन्होंने ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ का संपादन-प्रकाशन शुरू किया। 1991 में उनकी पुस्तक ‘दक्षिण अप्रफीका : गोरे आतंक के खिलाफ काली चेतना’ प्रकाशित हुई और 1994 में उन्होंने दक्षिण अप्रफीका के प्रथम जनतांत्रिक चुनाव की दैनिक ‘जनसत्ता’ में रिपोर्टिंग की । नेपाल के माओवादी आंदोलन पर उनकी पुस्तक ‘रोल्पा से डोल्पा तक’ काफी चर्चित रही। उन्होंने बीस से अधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है ।